क्या आप जानते है कि ट्रांसफार्मर क्या है (What is Transformer in Hindi)और यह कैसे काम करता है? बिजली का सीधा सम्बन्ध ट्रांसफार्मर से होता है. बिजली क्या है और इसकी उत्पत्ति कैसे होती है हमने पिछले पोस्ट में पढ़ लिया है.बिजली को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए ट्रांसफार्मर की जरुरत पढ़ती है. ट्रांसफार्मर बिजली को हाई वोल्टेज से कम वोल्टेज में बदलता है और फिर इसका इस्तेमाल उपकरणों को चलाने में किया जाता है.
ट्रांसफार्मर क्या है – What is Transformer in Hindi
ट्रांसफार्मर एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक यन्त्र है जो बिजली को व्यर्थ किये बिना बदलता है, यानी ट्रांसफार्मर जरुरत के अनुसार प्रत्यावर्ती वोल्टेज को कम या ज्यादा कर सकता है.ट्रांसफार्मर को परिणामित्र या स्थिर यन्त्र भी कहा जाता है, क्योंकि ट्रांसफार्मर का कोई हिस्सा हिलता-डुलता नहीं है यानि सदैव स्थिर रहता है.
ट्रांसफार्मर का अविष्कार सन 1831 में माइकल फराडे और जोसेफ हेनरी ने किया था. ट्रांसफार्मर का काम वोल्टेज को बदलना हैजैसे हमारे पास को 20 Volt से चलने वाला यन्त्र है. अब यदि ट्रांसफार्मर के पास 250 Volt की प्रत्यावर्ती धारा आ रही है तो उसे बदलकर 20 Volt कर देता है. AC करंट को DC करंट में बदलने के लिए रेक्टिफायर का इस्तेमाल किया जाता है.
ट्रांसफार्मर का सिध्दांत – Working Of Transformer In Hindi
ट्रांसफार्मर फराडे लाँ ऑफ मैग्नेटिक इंडक्शन के सिद्धांत पर आधारित है, जिसके अनुसार “वोल्टेज का मेग्नीट्यूड फ्लक्स में होने वाले बदलाव के दर के समानुपाती होता है”.
ट्रांसफार्मर में जब प्राथमिक कुंडली मे प्रत्यावर्ती धारा को प्रवाहित किया जाता है तो क्रोड में चुम्बकीय क्षेत्र पैदा होने लगता है और इसका मान लगतार बदलता रहता है. द्वितीयक कुंडली इसी क्रोड से लिपटी रहती है इस वजह से द्वितीयक कुंडली से गुजर रहे चुम्बकीय फ्लक्स में भी परिवर्तन होने लगता है जिससे विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत से चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होने के कारण द्वितीयक कुंडली मे प्रत्यावर्ती धारा बहने लगती है. इस सिद्धांत के अनुसार-
- दूसरी कुंडली मे पैदा हुई प्रत्यावर्ती धारा का मैग्नीट्यूड फ्लक्स के सामान होता है.
- पैदा हुई प्रत्यावर्ती धारा की दिशा सीधे हाथ के ग्रिप सिद्धांत से अनुमान लगा सकते है.
- दूसरी कुंडली मे पैदा हुई प्रत्यावर्ती धारा की आवर्ती पहली कुंडली मे प्रवाहित की जा रही धारा के समानुपाती होगी.
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ट्रांसफार्मर के भाग – Parts of Transformer in Hindi
कॉम्पोनेन्ट के आधार पर ट्रांसफार्मर कई मुख्य भाग होते है. एक ट्रांसफार्मर के अन्दर कई प्रकार के छोटे-बढ़े कॉम्पोनेन्ट लगाये जाते है. अब जानते है कि ट्रांसफार्मर में कौन कौन से कॉम्पोनेन्ट लगे रहते है और इनका क्या काम होता है.
Core Type
जिस ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग को कोर के चारों ओर लगाया जाता है उसे Core Type कहते हैं. ट्रांसफार्मर के कोर को बनाने के लिए सिलिकॉन स्टील की पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है,जो कि ट्रांसफार्मर में बहने वाले करंट को Loss होने से बचाती है. इन पत्तियों का आकार लगभग 0.35 Mm – 0.75 Mm के मध्य होता है और यह पत्तियां प्रायः E, I, L आदि के आकार में लगाई जाती है .
Sell Type
जिस ट्रांसफार्मर में कोर को वाइंडिंग के चारों तरफ लगाया जाता है तो उसे Sell Type कहते हैं. इस ट्रांसफार्मर में दो वाइंडिंग को सेंटर कोर में रखा जाता है.
Winding
ट्रांसफार्मर में इस्तेमाल होने वाली तारों के फेरे को Winding कहते हैं. single phase ट्रांसफार्मर में दो प्रकार के वाइंडिंग लगी रहती है- एक primary winding और एक secondary winding. यदि ट्रांसफार्मर Three phase वाला है तो उसमे Six वाइंडिंग का इस्तेमाल होता है – तीन primary winding और तीन secondary winding.
Conservator tank
Conservator tank का इस्तेमाल बड़े-बड़े ट्रांसफार्मर किया जाता है.Three phase के ट्रांसफार्मर में Conservator tank लगा रहता है जिसके अन्दर
तेल भरा रहता है जो ट्रांसफार्मर को गर्म होने से बचाता है.
Breather
यह Conservator tank से जुड़ा रहता है. जैसे मनुष्य के शरीर में नाक का सास लेना और छोड़ना होता है ठीक उसी प्रकार से Breather भी ट्रांसफार्मर की हवा को अन्दर-बाहर करता है.
Oil Level Indicator
Conservator tank में काफी मात्रा में तेल भरा रहता है और इसी तेल को नापने के लिए Oil Level Indicator लगा होता है. Oil Level Indicator टैंक के ऊपर लगा रहता है जो कि Conservator tank में भरे ऑयल की मात्रा को बताता है.
Radiator Fan
जैसे गाड़ी-वाहन के इंजन को ठंडा रखने के लिए रेडिएटर लगा होता है ठीक उसी प्रकार से जब ट्रांसफार्मर चलता है तो बहुत गर्म हो जाता है और उसे ठंडा रखने के लिए Radiator Fan का इस्तेमाल किया जाता है.
Oil Filling Pipe
Conservator tank में तेल भरने के लिए एक पाइप का इस्तेमाल किया जाता है उसका नाम है Oil Filling Pipe. इसी पाइप की मदद से ट्रांसफार्मर तेल भरा जाता है.
ट्रांसफार्मर के प्रकार – Types of Transformers in Hindi
ट्रांसफार्मर कई प्रकार के होते है.अलग-अलग जरुरतो के आधार पर ट्रांसफार्मर को बनाया गया है.
Voltage level के आधार पर ट्रांसफार्मर दो प्रकार के होते है-
उच्चायी ट्रांसफार्मर- Step Up Transformer
ऐसे ट्रांसफार्मर जो इनपुट वोल्टेज को बढ़ाकर अधिक आउटपुट वोल्टेज प्रदान करते हैं उन्हें उच्चायी ट्रांसफार्मर कहते हैं.इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में प्राइमरी वाइंडिंग के मुकाबले सेकेंडरी वाइंडिंग पर अधिक winding (तार के फेरें) की जाती है.
अपचायी ट्रांसफार्मर- Step Up Transformer
ऐसे ट्रांसफार्मर जो इनपुट वोल्टेज को घटाकर कम आउटपुट वोल्टेज प्रदान करते हैं उन्हें अपचायी ट्रांसफार्मर कहते हैं.इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में प्राइमरी वाइंडिंग पर अधिक winding (तार के फेरें) और सेकेंडरी वाइंडिंग पर कम की जाती है. इस ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल बहुत ज्यादा किया जाता है क्योंकि सबसे ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण DC करंट से चलते हैं जैसे यदि ऑडियो एंपलीफायर को चलाना है जिसकी क्षमता 15 Volt DC करंट की है. अब घर पर आने वाले 220 AC करंट को ट्रांसफार्मर 15 Volt DC में बदल देगा जिससे ऑडियो एंपलीफायर चलने लगेगा.
फेज के आधार पर ट्रांसफार्मर दो प्रकार के होते है-
सिंगल फेज ट्रांसफार्मर
यह ट्रांसफार्मर सिंगल फेज के AC वोल्टेज चलता है और यह वोल्टेज को घटा-बढ़ा सकता है. इसमें दो वाइंडिंग का इस्तेमाल किया जाता है एक प्राथमिक वाइंडिंग और एक द्वितीयक वाइंडिंग.
थ्री फेज ट्रांसफार्मर
यह ट्रांसफार्मर थ्री फेज के AC वोल्टेज चलता है इसलिए इसे थ्री फेज ट्रांसफार्मर कहते है. इसमें छः वाइंडिंग का इस्तेमाल किया जाता है तीन प्राथमिक वाइंडिंग और तीन द्वितीयक वाइंडिंग.थ्री फेज ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल आजकल बहुत ज्यादा हो रहा है.
मुझे उम्मीद है आपको यह पोस्ट ट्रांसफार्मर क्या है (What is Transformer in Hindi) और कितने प्रकार के होते है जरुर पसंद आई होगी. अब हम जान चुके है कि जिस बिजली का इस्तेमाल हम 24 घंट करते है उसमे ट्रांसफार्मर का कितना बढ़ा योगदान है. यदि आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो इसे सोशल मीडिया पर भी शेयर करें जिससे लोगो को ट्रांसफार्मर के बारे में सही जानकारी मिलेगी.
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Nice jankari sirji